अवसर

आज की नई सुबह में,
जो मैंने मुट्ठी खोली है।।
देखकर इस हथेली को,
चूमी रेखाओं की टोली है।
बदलनी होंगी यह रेखाएं,
मिला आज है फिर अवसर।।
देनी होगी स्वयं को दिशाएं,
कह रहा हूं चेहरे को पढ़कर।।
दिशाहीन नहीं है होना,
अब नहीं बनना किसी का खिलौना।।
रुक कर, थम कर,
उठ कर, गिर कर।।
खुद ही है, स्वयं को खोजना,
अब दूंगा अंजाम उन वादों को।।
जो खुद से मैंने कर डाले हैं,
पाकर उन मुकामों को,
करने अंधेरे में उजाले हैं।।



                               ✍️ पूनम✍️✍️

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