अलबेला बचपन
ऐसा बचपन हमारा था, सौ बातों से न्यारा था।। मिल बैठकर चुटकुले सुनाते थे, नानी के घर मौज मनाते थे ।। अंताक्षरी भी गाते थे , चिड़िया की जगह गधे को उड़ाते थे।। चारपाई पर बैठ कर खूब शरबत उड़ाते थे, एक दूजे के पास बैठकर, हंसी के ठहाके लगाते थे। जब बिजली गुल हो जाती, तब छत पर चढ़ जाते थे ।। नानी से कहानी सुनते थे , और धीमे से सो जाते थे ।। बाइस्कोप वाले के आने पर , नानी से पैसे ले जाते थे । तस्वीरों को देखकर, सारे रंगीन हो जाते थे ।। शाम के ढलते ही, खूब गोलगप्पे खाते थे।। ऐसे नहीं थकते थे, नाना को घोड़ा बनाते थे।। टिन टिन की घंटी पर, कुल्फी को मुंह में जमाते थे।। सभी, सब कुछ भुला कर, सैर को जाते थे।। जब भी कोई मेहमान आता था, पास उसके बैठ जाते थे ।। ऐसा बचपन हमारा था , सौ बातों से न्यारा था।। पर आज का बचपन अलबेला है, जिसने कर दिया बच्चों को अकेला है। बच्चों को मोबाइल से फायदा है। गली मोहल्ले पार्क सुनसान है, कट्टी - पुच्ची वाले दोस्तों से अनजान है।। बच्चे कहते हैं वह बातें पुरानी हो चुकीं, हरदम उनकी जरूरत,मोबाइल और टीवी में छिपी।। अब तो दो पल को नहीं सांस मिलती है, बिना मोबाइल के म