DEDICATED TO MOM
आंचल ही है मां का, कोई,और नहीं है छॉव । जा कर किसको दिखाऊं, मां अपने दिल का मैं घाव । मां तूने ही तो सिखाया , सदा मुस्कुराते रहना । कुछ भी गर हो जाए , ना किसी की गलती को सहना। रखना अपने मस्तिष्क को ठंडा , में ऐसा नहीं हूं बंदा। कितनी दुनिया मैंने परखी , मिली न तुझ से प्यारी सखी । आज जब भी कुर्सी हिलती, खोजता हूं खुद में गलती। तू जब भी कुर्सी पर बैठी दिखती, मेरे उधड़े कपड़ों को सिलती। ठंडी पवन जैसे कोई चलती, अठखेलियां सी करती । आज खाया तेरे हाथों का अचार, हो गया मैं खुशगवार । याद आया तेरा वो सुविचार , जिंदादिली है जीवन का सार । भर आया मेरी आंखों में प्यार।। बड़े दिनों बाद जब , धूल पोंछी तेरी तस्वीर से अब। ना जाने तेरा कौन सा है मजहब, तेरे जाने के बाद। ढूंढता हूं उंगली तेरी आज।। जिसे पकड़कर चलना सीखा था , वही सहारा खोजता हूं । तेरे शब्दों को तोलता हूं , कानों में जो रस घोलते हैं। तेरी लोरी का हूं प्यासा , आ एक बार दे जा मुझे दिलासा।। आज भी जब मैं पुकारता हूं, तेरी सूरत को निहारता हूं । किस मिट्टी की थी