आज जब मैं सुबह उठी, बालों को संभालते हुए, बर्तन गैस पर रखा, और सुबह की चाय का मजा लिया। आ जाओ तुम भी कभी चाय पी जाओ हमारे साथ भी। ऐसा दिल ने कहा, शायद अनजाने में कुछ पहचाने, चेहरे से मैंने कहा, कुछ दुखड़ा है क्या? दिल तो शीशे का टुकड़ा है ना। नहीं चूर होने देंगे, साथ तुम्हारे चल देंगे। हाथ थाम के रख लेंगे, सांसों से जुड़ जाएंगे। संग तेरे उड़ जाएंगे, तुमने कुछ ना कहा, पर वही तो सब कुछ था। मेरे लिए भी और वक्त के लिए भी। हर बात जुबां से कही नहीं जाती, चाय हमारे हाथ की क्यों पी नहीं जाती? हर दिन तुम व्यस्त हो, मैं भी कहां खाली हूं? पर एक चाय की तो बात है, दिन बीत गए चले गए, और सावन आ गया। कहते हैं सावन में दोनों, मजेदार लगते हैं। चाय भी और हमदम भी, आज हम गुमसुम है। क्योंकि मैं और मेरी चाय, ढूंढते हैं तुझे तू एक बार तो आए। बुरा नहीं लगेगा अगर, चाय ठंडी हो जाएगी!!! लगता है बरसात की पहली बूंद, हम पर ही बरस जाएगी। इंतजार कब तक करें? कब तक इलायची कूटें ? चाय का कप ट्रे में रखें? आज मैंने देसी चाय बनाई है। शायद आंगन में कोई चिट्ठी आई है!!! चलो चाय ,खाली तो नहीं, पीएंगे।।। चिट्ठी पढे