बरखा




आई बरखा भीगे हम ,
साँसे भी है मध्धम मध्धम,
 बोली कोयल ,नाचे मोर ,
खिंचे चले हम तेरी ओर,
भीगा तन मन भीगा आँचल,
लगता है हम हो गये पागल
पीली सरसों, फूली फूली,
मैं तो इस दुनिया को भूली ।
गीली मिट्टी की सौंधी खुशबू ,
संभल कर चलना,
गिरना मत तू। बूँदेंं गिरी  फूलों पर जैसी,
खुशी हुई मुझको भी ऐसी।
जुलाई आया, बरखा लाया।
लो  बदरा का मौसम आया ।
काजल  काला , बदरा काले ।
 किशन कन्हैया, मुरली वाले ।
मन  कहता है बन जाऊँ राधा ।
बरखा आज करो मुझसे एक वादा।
हर सावन आँगन में आना।मत कर लेना कोई बहाना ।
 बरखा आना समय समय पर,
नाचूँगी मैं झूम झूम कर।
तेरा मेरा नाता है गहरा, याद रखना ये वादा तेरा ।



 





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