REFLECTION OF MIRROR


एक बात जुबां पर आई है,
 दर्पण ने वह बात बताई है। 
संबंध क्या यह तेरा मेरा, 
 रिश्ता है तुझसे गहरा। 

क्या  सत्यता है बता दे मुझे,
प्रतिबिम्ब  को दिखा कर मुझे। 
तू मुझे क्या कहना चाहता है? 
कैसा गहरा यह नाता है। 

बाहरी रुप बहुत सुंदर  है, 
जो दिखा  क्या दिल के अंदर है?
तन्हा  दिल पूछता है तुझसे ? 
कैसा रिश्ता  ये तेरा मुझसे ? 

बात न बना मुझसे झूठी, 
सुन कर तुझे मैंने  अपनी  आंखे मंदी। 
अब तो बता मैं कौन हूं? 
रूह की हूं मैं एक आवाज,
या कि एक अहसास ।
मेरे भीतर की गहराई,
आसानी से उसने बतलाई।

तेरे भीतर भी खुदा सोता है,
चेहरा तो बस एक मुखौटा है।
जगा दे उस खुदा को तू भी,
प्रतिबिम्ब  को नयी राह दिखा दे तू भी।

आंसू तुम बहा देना,
थोड़ा  सा  मुसकुरा देना।
तिरछे मुख बना कर क्या तुम चिढाओगी,
तेरे भीतर का आघात,
दर्पण  जानता है एक एक बात।

अंदर के प्रतिद्वंद्वियों  को तू,
पक्ष विपक्ष की जंगों को।
दर्पण  को सब बता देना,
 घनघोर  घनों को बरसा देना तू ।

तेरी भावनाओं  को मैं टटोलूंगा,
पलों को खंगालूंगा, संभालूगा।
एक बार ऐसा झकझोरूंगा,
करुंगा पृथक हर संशय को।
ईश्वर  भी  नही जानता,
 मेरी  बातों  के अर्थ  को।

बस यहीं  से मेरा आगाज़ है,
ये खुदा , जो तेरे साथ है।
एक दिन तुझे संभालेगा ,
 लगे मुखौटे को उतारेगा।
तभी  मैं खुश हो जाऊंगा,
तुझे वास्तविक चेहरा, तेरा दिखाऊंगा।

ये दुनिया है मुखौटों की ,
कब तक उतारकर, लगाएगी।
कभी तो मेरे  सन्मुख  आओगे,
दिल की बातों को खोलोगे।
तब अपना सम्बन्ध  बताऊंगा,
 तुमसे  कुछ न छिपाऊंगा।

आओ मित्रों  अपने  दिलों को  खोलो,
आकर मेरे सन्मुख  कुछ तो बोलो।
मैं तुमको राह दिखाऊंगा।
दिल की  आवाज  सुनाऊंगा ,
एहसासों की दुनिया  में।
 तुझे,  तुझसे  मिलवा दूँगा।
सही राह  का राही बनाऊंगा,
मैं  दर्पण  कहलाऊंगा, मैं  दर्पण
कहलाऊंगा।।।।।।










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