मेरी कलम से
हर दिन मजमा सा क्यों लगता है,
हर शख्स परेशान सा क्यों दिखता है?
कहीं दानवता हावी है, मानव पर
और कहीं नशे का घाव मिलता है?
हर दिन मजमा सा क्यों लगता है?
हर शख्स परेशान सा क्यों दिखता है?
कहीं पर दाने दाने को हैं मोहताज,
तो किसी के सिर पर मोहरों का ताज।
क्यों हमें सिसकता सा हमारा आज लगता है?
हर दिन मजमा सा क्यों लगता है?
हर शख्स परेशान सा क्यों दिखता है?
गरीब अपनी गरीबी से क्यों बिकता है?
हर राह पर घोटाले का ही तड़का क्यों लगता है?
आवाज हैं पर सबके मौन रहने में ही क्यों अच्छा है?
हर समझदार इंसान अभी तक बना क्यों बच्चा है?
जिम्मेदारी ने दबा दिया उसे जो व्यक्ति सच्चा है।
सच की परछाई दिखती नहीं है,
इंसानियत और सच्चाई जो बिकती नहीं है।
आंसू सूख गये जो वसुंधरा के,
बादलों को बरसने को किसान क्यों तकता है?
हर दिन मजमा सा क्यों लगता है ?
हर शख्स परेशान सा क्यों लगता है ?
नारी के शिक्षा सम्मान पर ही प्रश्न क्यों उठता है?
नारी पर क्रोधित होने में आखिर क्या मिलता है ?
इंसान के मस्तिष्क में ऐसा क्या चलता है?
नारी का आंचल भी आज क्यों बिकता है ?
हर दिन मजमा सा क्यों लगता है?
हर शख्स परेशान सा क्यों दिखता है ??
सिद्ध करें स्वयं को या परिपक्व हो जाओ।
स्वतंत्र हो, अब परतंत्रता को मत अपनाओ।
विचारों में बंधन सा क्यों दिखता है?
हर दिन मजमा सा क्यों लगता है?
खिलाड़ी होकर पिछाड़ी सा क्यों दिखता है ?
हर बात पर बेबाक सा क्यों सहता है?
हर दिन मजमा सा क्यों लगता है????
- पूनम✍️✍️✍️✍️
Nice😊
ReplyDeletesabung online ayam jago tarung
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