दिल का प्रश्न

प्रश्न था मेरा मुझसे,
आज, क्या सही किया तुमने,
दिल से दिल को जोङा है?
या, शीशे से दिल को, तोड़ा तुमने ?

अन्तःकरण से आया  एक स्वर।
जाने लगा है, तू किधर?
क्या सोचा है कभी तुमने?
दिल तो है, परमात्मा का घर,
प्रेम तथा पवित्रता से गर ,
ओतप्रोत होने दे दिल को।
जाना तुमको भी है, अपने घर।

आज प्रसन्न हूँ, मैं क्योंकि,
उस दिल को कभी था, जोङा मैने।
तन्हाई में मैंने भी, सागर की लहरों को,
कभी था छेड़ा मैने।
मीठे से उस दिल को,
जोङकर था छोङा मैने।

मधुरता से पूर्ण इस दिल की,
श्वासों को किया था मैने बलिदान,
चाहते हुए भी न चाहा था,
उस बेमतलब से दिल को तुमने।

एक परमात्मा ही है तेरा सार,
आखिरी पल संभाला था देकर प्यार ।
श्वासो की इस माला को,
पिरोया जिसने, जोङा जिसने ।
पाया मैने उसको था।
खोलकर दिल को छोङा जिसने ,
दर्द से परिपूर्ण जीवन था।
जीवन से दर्द , किया थोङा उसने।

                        ✍️पूनम✍️✍️✍️



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