फरमान
रात घोर अंधियारी है,
छिपा एक शातिर खिलाड़ी है ।
दिखता नहीं भरमाता है,
जाने कहां से आ जाता है?
रात को गुजरना होगा ।
मानव तुझे ठहरना होगा ।
सब कर्मों का फेर है ,
इसी कारण यह अंधेर है।
खुद को हमें बदलना होगा,
मानव तुमको आगे बढ़ना होगा।
अब भी नहीं कुछ बिगड़ा है,
प्रकृति से यह कैसा झगड़ा है?
झगड़े को निबटाना है तो,
नई पहर को लाना होगा ।
खौंफ यह दर्दनाक है,
श्मशानों में दहकती आग है।
अश्रु यह सूख जाएंगे,
जब तक हम समाधान कर पाएंगे।
परंतु घर ना बने शमशान ये
है मेरा फरमान यह।
खतरों से जूझना है तो,
फिर से पैरों पर खड़े होना।
मुंह पर मास्क जरूर लगाना।
हैंडवाश से हाथ धोना।
दो गज की दूरी रखना,
आज तो बहुत जरूरी है।
हर दिन एक पेड़ लगाना है,
पानी बचाना मजबूरी है।
हे!प्रकृति , मेरी सांसे लौटा देना,
बस और नहीं है अब मुझे यह सहना।
✍️पूनम✍️✍️
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